


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के प्रथम दिन संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने "हिंदू" शब्द के व्यापक अर्थ और संघ की मूल प्रेरणाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि "हिंदू" शब्द केवल धार्मिक पहचान नहीं बल्कि राष्ट्र के प्रति कर्तव्यबोध का प्रतीक है।
भारत माता की जय" है संघ कार्य की प्रेरणा
डॉ. भागवत ने कहा कि संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर किया गया था, और उसकी सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब भारत विश्वगुरु बनेगा । संघ कार्य की प्रेरणा हमें संघ प्रार्थना के अंत में कहे जाने वाले ‘भारत माता की जय’ से मिलती है। उन्होंने यह भी कहा कि संघ का उत्थान एक धीमी और लंबी प्रक्रिया रही है, जो अब भी निरंतर जारी है।
हेडगेवार जी का दृष्टिकोण: संगठन का संकल्प
संघ की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गई थी। उन्होंने यह संकल्प लिया कि जब किसी के पास समय नहीं है तो वे स्वयं राष्ट्र निर्माण के लिए कार्य करेंगे। इसका उद्देश्य था — संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना और देशभक्ति के साथ सामाजिक एकता को बढ़ाना।
हिंदू" नाम का मर्म: एक समावेशी दृष्टिकोण
मोहन भागवत ने कहा कि भले ही "हिंदू" नाम दूसरों द्वारा दिया गया हो, लेकिन हम इसे मानव शास्त्रीय दृष्टिकोण से देखते आए हैं। उनके अनुसार - हिंदू शब्द केवल एक धर्म का नाम नहीं, बल्कि यह राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का भाव है। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में मनुष्य, मानवता और संपूर्ण सृष्टि को एक-दूसरे से जुड़ा हुआ माना गया है। यह विचार भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है।
भारत का लक्ष्य: फिर से बने विश्वगुरु
डॉ. भागवत ने यह भी दोहराया कि संघ का उद्देश्य भारत को फिर से सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों में विश्वगुरु बनाना है। उनका मानना है कि केवल भौतिक प्रगति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्थान भी आवश्यक है।